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युवा भावना नहीं संभावनाओं का द्वार

प्रिय युवाओं 

सादर वंदे,

ऐ युवा वेगवान, भावनाओं में मत बहना

संभावनाओं की राह तू, काम तेरा सृजन करना


युवाओं को कोई लाचार कहे यह मुझे बर्दाश्त नहीं है। युवाओं को कोई बेकाम कहे यह मुझे स्वीकार नहीं है। इस बात का मुझे अफसोस है कि युवाओं को स्वयं की शक्ति का एहसास नहीं है।

“युवा” और “लाचार” यह दो ऐसे शब्द है जो कभी आपस में कभी मिल ही नहीं सकते। युवाओं को जो कमजोर मानते हैं वे एक षड्यंत्र के तहत ऐसा करते हैं। जिससे कि युवा का मनोबल टूट जाए और उन्हें अपने षड़यंत्र का मोहरा बनाने की मनमाना छूट मिल जाए। ऐसे लोग स्पष्ट रूप से समाज विरोधी और राष्ट्र विरोधी हैं। जिसे समझना होगा।

देखता हूं जब युवाओं को करीब से तो पाता हूं एक बंद पड़ी गठरी जो अपार संभावनाओं से भरी हुई है। लेकिन उस पर फिलहाल धूल पड़ी हुई है। दुःख का विषय यह है कि यह धूल स्वयं उसके द्वारा समेटी हुई है।  जिस दिन वह इसे झाड़ लेगा उस दिन अपने में बसी अपार संभावनाओं को तराश लेगा। अपने को आत्मविश्वास से परिपूर्ण सकारात्मकता से भर सकेगा।

वैचारिक रूप से समाज को विशेषकर युवाओं को कमजोर बनाने का एक षड़यंत्र निरंतर चल रहा है। षड़यंत्रकारियों के द्वारा स्वतंत्र सोच खत्म करने के लिये एक के बाद एक भावनाओं के रैपर में पैक कर झूठ व नफरत से भरी बातें लगातार परोसी जा रही है।

आपको आत्म-अवलोकन करने की जरुरत है कि कहीं आप तो इस षड़यंत्र में नहीं फंस चुके हैं। यह पता करने के लिये आप को निम्न बिंदुओं पर गौर करने की जरुरत है 

आपकी धार्मिकता कहीं सांप्रदायिकता या धर्मांधता की ओर प्रवृत्त तो नहीं होती जा रही है ? 

2 आपकी मनन की दिशा कहीं नफरत की दिशा तो नहीं लेती जा रही है ?

3 आपकी सोच का दायरा कहीं एक के प्रति प्रेम व दूसरे के प्रति नफरत का तो नहीं होता जा रहा है  ?

4 महापुरुषों के आदर्श सदा प्रेरणादायी रहे हैं। आप उनके पथ पर ना चल पड़ें इसलिये स्वार्थी तत्वों द्वारा महापुरुषों की नीयत पर प्रश्न उठाए जाने लगे हैं। कहीं आप उसके प्रभाव में तो नहीं आ गये हैं ?

सोशल मीडिया में स्वयं के हितों की बातों से ज्यादा दूसरे की निंदा से संबंधित बातों को फैलाने की ओर आपका ध्यान तो नहीं है ?

अगर यह लक्षण आप अपने में पाते हैं। तो उसे दूर कर लीजिए क्योंकि इसका मतलब है आपका मन किसी दूसरे का गुलाम हो चुका है। वह जैसा चाह रहा है, आपको नचा रहा है। यह स्थिति इसलिये निर्मित हो रही है क्योंकि हम यथार्थ से ज्यादा भावनाओं में खोते जा रहे हैं। एक बात अच्छे से समझ लीजिए की “युवा भावना नहीं – संभावनाओं का द्वार” है। 

युवाओं को नकारात्मकता छोड़ सकारात्मकता की ओर बढ़ने का समय आ गया है। तो आज से आप सतर्क हो जाइए और यह संकल्प लीजिए कि हमें “भावनाओं” में नहीं आना है। जीवन का लक्ष्य अपने में बसी हुई “संभावनाओं” को बनाना है।

राजेश बिस्सा

9753743000

लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।

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