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पीलीभीत: केन प्रजाति के बाघों को जंगल नहीं गन्ने के खेत पसंद है

जंगल में बाघ की दहाड़ सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। इंसान तो क्या जंगली जानवर भी डर से थर थर कांपने लगते हैं। जंगल में बाघों की हुकूमत चलती है। शिकार भले ही कहीं करें लेकिन लौटकर जंगल ही आ जाते हैं। यहीं इनका बसेरा होता है लेकिन मौजूदा वक्त में बाघों का एक कुनबा ऐसा भी है जिस प्रजाति के बाघों को जंगल रास नहीं आ रहे। उन्हें रहने के लिए गन्ने के खेत पसन्द है। इससे बाघों से मानवों को खतरा उत्तपन्न हो गया है।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व बाघों में बदलाव को लेकर हैरान है। विभाग के मुताबिक इन बाघों को केन टाइगर नाम दिया गया है। कुछ समय पहले तक इनकी संख्या कम थी लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 12 से 15 के बीच पहुंच चुकी है। सन 2012 में पीलीभीत जिले के महोफ़ रेंज अमरिया क्षेत्र के डयूनीडाम इलाके में केन बाघों का एक कुनबा देखा गया था। इन बाघों के वहीं बच्चे हुए जिसके बाद यह बाघ जंगल गए ही नहीं और गन्ने के खेत में ही रहने लगे।

क्यों रहने लगे गन्ने के खेत में

विशेषज्ञों की माने जब जब एक बाघिन बच्चे को जन्म देती है तो वह एक सुरक्षित स्थान को तलाशती है जहां नर बाघ ना पहुंच सके बाघिन ने गन्ने के खेत को मुफीद स्थान समझकर यहां तीन-चार बच्चों को जन्म दिया था। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर अब 12 से 15 पहुंच चुकी है। इससे मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ने की संभावना है।

भरपूर मात्रा में मिलता है यहां पर शिकार

शिकार न मिलने पर हो सकता था कि इस प्रजाति के बाघ भी जंगल की ओर पलायन कर जाते लेकिन गन्ने के खेत में भी बाघों को शिकार की कोई कमी नहीं है। यहां नील गाय और सुअर बहुतायत मात्रा में फसल खाने आते हैं। बाघों का कुनबा इनका ही शिकार करता है। इसके अलावा हिरण भी पीलीभीत इलाके में बहुत है जो इन प्रजाति के बाघों को जंगल की ओर पलायन नहीं करने दे रही है।

क्या कहते हैं मुख्य वन संरक्षक ललित कुमार

मुख्य वन संरक्षक कहते हैं कि यह मामला चौंकाने वाला है। इसके कारणों का विस्तार से अध्ययन किया जा रहा है। बाघों के स्वभाव में बदलाव की प्रवृत्ति बढ़ी तो इंसानों के साथ खूनी संघर्ष भी बढ़ सकता है। भले ही बाघ अभी शांत हो मगर छेड़छाड़ पर आक्रामक भी हो सकते हैं। इसलिए वन विभाग की टीमें उन क्षेत्रों में अभियान के तौर पर कार्य कर रही हैं।

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