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सुशांत प्रकरण : परिवार ने चिट्ठी में दर्द बयां किया, जानिए और क्या लिखा है


एनजेआर, पटना। बिहार के लाल एवं अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के परिवार की लिखी नौ पेज की चिट्ठी बुधवार को सामने आई है। इसके माध्यम से इस वक्त परिवार पर लगे आरोपों का जवाब दिया गया है। लिखा है कि सुशांत के साथ जो हुआ, वह दुश्मन के साथ भी ना हो…।
साथ ही ऐसे लोगों के बारे में भी लिखा गया है, जो मीडिया में आने के लिए खुद को दिवंगत अभिनेता का रिश्तेदार जैसे मामा, भाई और अन्य रिश्तेदार बताते हैं। एक शायरी से खत की शुरुआत की गई है जिसके बाद एक-एक शब्द में सुशांत के पूरे परिवार का दर्द छलक रहा है।


खत में क्या है –


तू इधर, उधर की बात न कर ये बता कि काफिला क्यों लूटा, मुझे रहजनों से मिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है…।
कुछ साल पहले की ही बात है न कोई सुशांत को जानता था और न उसके परिवार को। आज सुशांत की हत्या को लेकर करोड़ों लोग व्यथित हैं और सुशांत के परिवार पर चौतरफा हमला हो रहा है। टीवी-अखबार में अपना नाम चमकाने की गरज से कई फर्जी दोस्त, भाई, मामा बनकर अपनी-अपनी हांक रहे हैं। ऐसे में बताना जरूरी हो गया है कि आखिर में सुशांत के परिवार होने का मतलब क्या है। सुशांत के माता-पिता कमाकर खाने वाले लोग थे। उनके हंसते-खेलते पांच बच्चे थे। उनकी परवरिश ठीक हो, इसलिए 90 के दशक में गांव छोड़कर शहर आ गए। रोटी कमाने और बच्चों को पढ़ाने में जुट गए। एक आम भारतीय माता-पिता की तरह उन्होंने खुद मुश्किलें झेलीं। बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होने दी। हौसले वाले थे, सो कभी उनके सपनों पर पहरा नहीं लगाया। कहते थे कि जो कुछ दो हाथ-पैर का आदमी कर सकता है तुम भी कर सकते हो। पहली बेटी में जादू था। कोई आया और चुपके से उसे परियों के देश ले गया। दूसरी राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए क्रिकेट खेली। तीसरे ने कानून की पढ़ाई की तो चौथे ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया। पांचवां सुशांत था। ऐसा, जिसके लिए सारी माएं मन्नत मांगती हैं। पूरी उमर सुशांत के परिवार ने न कभी किसी से कुछ लिया और न कभी किसी को आहत किया। परिवार को पहला झटका तब लगा जब सुशांत की मां असमय चल बसीं। फैमिली मीटिंग में यह तय हुआ कि कोई ये न कहे कि मां चल बसीं और परिवार बिखरे न सो कुछ बड़ा किया जाए। सुशांत को सिनेमा में हीरो बनने की बात उसी दिन चली। अगले आठ-दस वर्षों में वह हुआ जो लोग सपनों में देखते हैं। अब जो हुआ वह दुश्मन के साथ भी न हो। एक नामी आदमी को ठगों, बदमाशों और लालचियों का झुंड घेर लेता है। इलाके के रखवाले को कहा जाता है कि बचाने में मदद करें। अंग्रेजों की बारिश है, एक अदना हिन्दुस्तानी मरे, इन्हें क्यों परवाह हो।

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