गर्भ से बाहर निकला था शिशु का पैर, डॉक्टरों ने बनाया ये बहाना और कर दिया रेफर, फिर फार्मासिस्ट बनी मसीहा

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# CHC Chaukhutia
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न्यूज जंक्शन 24, अल्मोड़ा। पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली ने फिर शर्मसार किया है। इसकी बानगी एक बार फिर देखने को मिली है, जब प्रसव पीड़ा से कराह रही गर्भवती को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चौखुटिया (CHC Chaukhutia) में इलाज नहीं मिला, जबकि गर्भ में पल रहे शिशु का पैर बाहर निकलकर नीला पड़ चुका था। डॉक्टरों ने यह कहकर प्रसव कराने से इनकार कर दिया कि बच्चे की धड़कन बंद है। बाद में रानीखेत ले जाते समय एंबुलेंस में फार्मासिस्ट की मदद से प्रसव कराया गया।

चमोली जिले के गैरसैंण ब्लॉक के ग्राम पंचायत कोलानी के तोक खोलीधार निवासी कुसुम देवी (23) रविवार को करीब डेढ़ किमी पैदल चलने के बाद सड़क तक पहुंची थी। फिर यहां से परिजन उसे टैक्सी से करीब 18 किमी दूर सीएचसी चौखुटिया ले गए। परिजनों के अनुसार कुसुम की प्रसव पीड़ा इतनी बढ़ गई थी कि बच्चे का पैर बाहर निकल गया था। ये सब देखने के बाद भी सीएचसी चौखुटिया (CHC Chaukhutia) में तैनात डॉक्टरों ने प्रसव कराने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों ने यह कहकर गर्भवती कुसुम को रेफर कर दिया कि बच्चे की धड़कन बंद हो चुकी है। ज्यादा विलंब करने पर महिला की जान को भी खतरा पैदा हो सकता है। परिजनों का आरोप है कि एक डॉक्टर ने पुलिस बुलाने की धमकी तक दे डाली।

बाद में परिजन 108 एंबुलेंस से कुसुम को रानीखेत ले जाने को रवाना हो गए। दो किमी चलने पर चौखुटिया के पास ही बाखली में कुसुम की प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई। बच्चे के दोनों पैर बाहर निकल गए थे। यह देख एंबुलेंस में मौजूद फार्मासिस्ट सरिता खंपा ने किसी तरह सुरक्षित प्रसव करा लिया। इसके बाद जच्चा-बच्चा को फिर से सीएचसी ले जाया गया।

वहीं, पुलिस बुलाने की बात पर सीएचसी के डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे का पैर बाहर निकला था और नीला पड़ चुका था। बच्चे की धड़कन भी नहीं मिल रही थी। ऐसी स्थिति में गर्भवती की जान बचाने के लिए तुरंत बाहर भेजा जाना जरूरी था। बच्चा समय से दो महीने पहले हो गया, इसलिए भी कुछ दिक्कत हुई। एक डॉक्टर का कहना था कि गर्भवती को रेफर कर तुरंत जाने को कहा गया था लेकिन परिजन विलंब कर रहे थे। यही कारण था कि पुलिस बुलाने की बात कही गई। इसे परिजन गलत समझ बैठे।

वहीं, प्रसव कराने वाली एंबुलेंस की फार्मासिस्ट सरिता खंपा ने आरोप लगाया कि सीएचसी में डॉक्टरों का व्यवहार अच्छा नहीं था। वे थोड़ा रुचि लेते तो बच्चे के पैर अंदर डाल सकते थे लेकिन लटकते पैरों में ही रेफर कर दिया गया, जो उचित नहीं था। रेफर करने की मजबूरी में गर्भवती को बाहर ले जाना जरूरी था।

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