इस बार दो दिन मनेगी होली, देश भर में 18 व उत्तराखंड में 19 मार्च को खेला जाएगा रंग, जानें क्या है इसका कारण

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न्यूज जंक्शन 24, हल्द्वानी। होली (Holi 2022) का त्योहार आने में कुछ ही दिन बाकी हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, जबकि चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। मगर इस बार कई लोग होली के दिन को लेकर भ्रमित हो रहे हैं। क्योंकि होली इस बार दो दिन 18 व 19 मार्च को पड़ रही है। ऐसे में रंग किस दिन और कब खेला जाएगा, इस सवाल का जवाब दे रही हैं ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी।

ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी का कहना है कि बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली (Holi 2022) का 13 मार्च रविवार को चीर बंधन व रंग धारण के साथ शुभारंभ होगा। आंवला एकादशी का उपवास 14 मार्च सोमवार को रखा ,जाएगा परंतु एकादशी तिथि को संपूर्ण दिवस भद्रा (13 मार्च रात्रि 11:20 से 14 मार्च को दिन में 12:08 तक) व्याप्त होने के कारण रंग धारण व चीर बंधन 13 मार्च को 10:22 के उपरांत किया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी
होलिका दहन व रंगभरी होली इस दिन

ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी बताती हैं कि 17 मार्च को होलिका दहन रात्रि 9:04 से 10:22 के बीच किया जाएगा, क्योंकि पूर्णिमा तिथि व प्रदोष काल भद्रा से व्याप्त होने के कारण होलिका दहन रात्रि 9:04 के बाद ही किया जाएगा। रंग भरी होली (छलड़ी) देश भर में 18 मार्च को व उत्तराखंड में 19 मार्च को मनाया जाएगा, क्योंकि पूर्णिमा तिथि संपूर्ण पूर्वाह्न में अपराहन 12:49 तक रहेगी। अतः रंग भरी होली (Holi 2022) 19 मार्च को उदययापिनी चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि में मनाई जाएगी। होलीकाष्टमी से रंग भरी होली तक (10 मार्च से 19 मार्च तक)मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे।

चीर बंधन क्या है और क्यों मनाया जाता है

ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी बताती हैं कि मंदिरों में होली से पूर्व एकादशी पर खड़ी होली (Holi 2022) के पहने दिन चीर बांधने का अपना ही महत्व है। इस दिन लोग एक लंबे डंडे में नए कपड़ों की कतरन को बांधकर मंदिर में स्थापित करते हैं। फिर चीर के चारो ओर लोग होली गायन करते हैं और घर-घर जाकर होली गाते हैं। होलिका दहन के दिन इस चीर को होलिका दहन वाले स्थान पर लाते हैं और डंडे में बंधे कपड़ों की कतरन को प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं। जिसे लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर बांधते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और घर में सुख शांति बनी रहती है।

होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण

हिंदू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें एक पर्व त्योहार मनाने के पीछे वैज्ञानिक रहस्य भी होते हैं। ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी बता रही हैं कि होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण क्या है।

वह कहती हैं कि होली पर्व बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु के आगमन का समय पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। होलिका दहन पर आग आग की परिक्रमा करने से सभी बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है। इसके अतिरिक्त वसंत ऋतु के आसपास मौसम परिवर्तन होने के कारण मनुष्य आलस/सुस्ती से ग्रसित हो जाता है जिसे दूर करने हेतु जोर-जोर से संगीत सुनता एवं गाता है प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शरीर नई ऊर्जा का संचार होता है।

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